प्रीत लिखा किसी कहानी में
प्रीत लिखा किसी कहानी में
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तोहमत, पीर, खार ही आखिर मिले निशानी में।
ज़ख्मों की पूरी बस्ती देख लिया इक जिंदगानी में।
खूब मिले हैं पत्थर , ठोकर, कोई रोक सका ना,
चंचल नदिया सी बहती रही हमेशा रवानी में।
संबंधों की सागर मंथन में शिव सा विषपान किया
तब जा कर प्रीत लिखा है मैंने किसी कहानी में।
सपने भी मेरे हाय! कब, कैसे भगत निकल गए?
जिम्मेदारी की सब सूली चढ़ गए भरी जवानी में।
घिरी हुई उलझनों के झंझावत में सोच रही हूं,
अब कश्ती कैसे पार लगाऊँ ? दरिया तूफानी में।