परी
परी
कलम उठा के लिख देती हूँ,
अक्सर अपनी बातों को।
एक परी सपनों में आकर,
जगमग करती रातों को।
श्वेत वस्त्र है बदन गुलाबी,
केश सुनहरे खोले है,
अधर मंद मुस्कान बिखेरे,
नैना सबकुछ बोले हैं,
मोती सी वो लड़ी दिखाती,
मुख गवाक्ष कर दांतों को।
एक परी सपनों में आकर,
जगमग करती रातों को।
माथे में मयंक सी बिंदिया,
शीतल रश्मि बिखेरी है,
नथ मणि माला कुंडल सोहे,
आकृति परम उकेरी है,
होंठ दहकते अंगारे से,
छेड़ रहे जज्बातों को।
एक परी सपनों में आकर,
जगमग करती रातों को।
खिलता यौवन चंचल सांसें,
सबका दिल धड़काती है,
है करधौनि लचीली कटि पे,
ज्यों अनंग मदमाती है,
खिलते चक्षु प्रेम में डूबे,
खोज रहे बरसातों को।
एक परी सपनों में आकर,
जगमग करती रातों को।
पायलिया की रुनझुन धुन से,
जो संगीत निकलता है,
गजबन जैसी चाल देखकर,
हिम सा 'उदय' पिघलता है,
पटाक्षेप भी हो जायेगा,
समझ सकूं जज्बातों को।
एक परी सपनों में आकर,
जगमग करती रातों को।