प्रेम
प्रेम
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प्रेम-भाव, उद्दात, मनोरम
अन्तस का अद्भुत आलोड़न
अनहद सा दैविक स्वर बाजे
कण कण में होता स्पंदन
हवा चली ऐसी मतवाली
लहरा जाए डाली डाली
मंत्रमुग्ध सी धरा- सुंदरी
इठलाता है मधुबन
अकथ, अनोखी, आशा है
मौन की यह कैसी भाषा है?!
ज्यों कोई अनबूझ पहेली
पगलाई सी अभिलाषा है
नेह की कोपल फूट रही
भोले मन को लूट रही
कोयल छेड़े मधुर रागिनी
मायावी ऋतु का अभिनंदन।
