प्रेम
प्रेम
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प्रेम के बारे में लिखने का विचार आया,
तो सबसे पहले अपने प्रियतम का ख्याल आया,
उसकी बातें-आदतें उसका स्नेह का याद आया,
फिर सोचा क्या केवल यही है प्रेम की माया,
और सभी रिश्तो में भी तो प्रेम ही है समाया,
समाज से टकराकर जिसने पैरों पर खड़ा किया,
ऐसा गजब व अद्भुत प्रेम माता-पिता का है पाया,
मन की हर बात सुनने को तुम्हे खड़ा है पाया,
ऐसा प्रेम तो बस दोस्तों से ही है पाया,
और क्या-क्या बताऊं किससे क्या है पाया,
जिसे भी मैंने प्रेम किया बदले में प्रेम ही है पाया,
जीवन में बस यही मूल मंत्र है अपनाया,
जानबूझ कर किसी का दिल ना दुखाऊँ खुदाया।
