पर्दा
पर्दा
मैं पर्दों से सवाल करना चाहती हूँ
जो घरों में झूलते रहते हैं
कैसे छुपा लेते हैं वे
गहरी उदासी उन घरों की
जो पसरी रहती आँगन तक
मैं पर्दों से सवाल करना चाहती हूँ
कैसे मुस्कुराते हैं
बड़ी चालाकी से
जब मेहमान घर आते हैं
मैं सवाल करना चाहती उन पर्दों से
ये चालाकी उन्होंने कहाँ से सीखी है?
कैसे सीखी है?
और कब सीखी है?
पर्दे बड़े मासूम होते हैं
वे कभी किसीको बेपर्दा नही करते
उनको पता होता हैं फर्क
डिप्लोमेसी और मजबूरी में
इसलिए खामोश निगाहों से
मेरे सवाल को टाल देते हैं
और हवा के झोंकें पर
फिर से मुस्कुराने लगते हैं...
