पिता-पुत्र संवाद
पिता-पुत्र संवाद
24*7 दिनचर्या वाले बिजनेसमेन या फिर एम एन सी में
जॉब वाले बेटे की
व्यस्त जिंदगी देख
पिता ने बेटे से कुछ यूं कहा-
मैं नहीं कहता
अधिक देर मेरे पास बैठा कर,
मेरे से सलाह मशवरा कर।
तू काम न कर।
मेरे लिए कोई दवाई ला या
ज़रुरत की कोई और वस्तु ला।
तू मेरी आर्थिक मदद कर।
मेरी पेन्शन बहुत है।
मैं केवल इतना कहना चाहता हूं
अपने स्वास्थ्य की ओर भी
ध्यान दे कुछ व्यायाम कर
कुछ विश्राम कर
कुछ परिवार के साथ
मिल समय बिता
बीवी, बच्चे तुम्हारी राह
देखते रहते हैं
उन्हें तो देख।
बेटा यूं बोला
आप चिंता न करें
मैं सही सलामत हूं
यही उम्र है मेरी
चार पैसे कमाने की
अब नहीं कमाऊँगा
तो बुढ़ापा कैसे निभाऊँगा।
तुम्हारे अंदर इतनी असुरक्षा क्यों है बुढ़ापे को लेकर
बुजुर्गों की इतनी ज़मीन ज़यदाद है तुमने स्वयं भी
पर्याप्त जोड़ लिया होगा।
धन से अधिक
महत्वपूर्ण है स्वस्थ रहना।
मैं यह नहीं कह रहा
कुछ मत कर
करो अवश्य पर
एक सीमा तक।
जहां तक मेरा सवाल है
बाहर मैं जा नहीं सकता
किसी से बोलने को
तरस जाता हूँ
जब से तुम्हारी मां स्वर्ग सिधारी है
मैं बिल्कुल अकेला पड़ गया हूं।
बहू जॉब में है
बच्चे पढ़ाई में हैं
अकेले टुकुर टुकुर देखता रहता हूं।
जवानी में कई हॉबीज़ पाली थीं यही सोचकर
बुढ़ापे में काम आएंगी
पर अब शरीर ही साथ नहीं देता।
मन करता है कोई
अपना पास आकर बैठे।
कमी कोई नहीं
शिकायत कोई नहीं
खाना पीना अच्छा मिल जाता है अपनी शारिरिक जरूरतें
स्वयं कर पूरी कर लेता हूं
अखरता है
तो केवल अकेलापन।
बेटा सोच रहा था
पिता का अकेलापन देखूं या
बच्चों की फीस
फ्लैट की इ एम आई,
बीमे की किश्त, कार की किश्त
और भी कई प्रकार की किश्तें।
आमदनी नहीं होगी
भुगतान कैसे होगा।
यह सच है
सम्पति काफी है
पर कैश कहाँ से आएगा।