फूलों सा बचपन
फूलों सा बचपन
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उन दिनों की बात,
जो है बहुत खास।
दिल को छूने वाली,
बाग में फूल खिलाने वाली।
जब होते थे हम बच्चे,
बच्चे थे मन के सच्चे।
अकल से थोड़े से कच्चे,
बहाने बनाने में बहुत अच्छे।
मन सबका जीत लेते,
सबकी गोदी में खेलते।
ना डर का पता ना भय का,
असर होता सिर्फ प्यार का।
रात रात तक नहीं सोते थे,
नींद खुलने पर हम रोते थे।
गले लगाकर माँ चुप करा देती थी,
प्यार कर हमें सुला देती थी।
याद बनकर रह गए,
बचपन की यादें कहला गए।
अब लौट कर नहीं आएँगे,
मन में केवल याद बनकर रह जाएंँगे।
खुशियों से भरा होता था,
फूलों से महकता रहता था।
कितने प्यारे बच्चे हैं
यही सारा जहान कहता था।
