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Ratna Kaul Bhardwaj

Others

4.8  

Ratna Kaul Bhardwaj

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फिर से आओ चक्रधारी

फिर से आओ चक्रधारी

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वातावरण अब अति दूषित है 

घूम रहे चहों और दुराचारी 

नारी की अब लाज बचाने 

फिर से आओ हे चक्रधारी 


सियासत अब दलदल की

है फैली हुई चारों और 

शकुनि, रावण फिर से हावी है 

जाएं तो जाएं किस और 


लावारिस सब बने हुए 

स्वार्थ झड़ें सींच रहा है 

जान कर भी सब अनजान बने हैं 

मानव आँखें मींच रहा है 


त्रेता में आकर तूने मोहन 

धरती से पाप मिटाया था 

सूझ बूझ से रणनीति समझकर 

अर्जुन को ज्ञानी बनाया था 


आना पड़ेगा फिर से धरती पर 

अज्ञान का अंधकार हटाना होगा 

गोवर्धन नहीं पूरी धरती को 

इक ऊँगली पर उठाना होगा 


करके फिर से ज्ञान की वर्षा

कलयुग को अब हराना होगा 

तेरे ही रचे हुए संसार को कान्हा 

अब तुमने ही बचाना होगा ।



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