फिर भी पराई हूँ मैं
फिर भी पराई हूँ मैं
जीवन तुझसे पाया, तेरी ही परछाई हूँ मैं।
कली हूँ तेरे आंगन की, फिर भी पराई हूँ मैं।।
बेटी बन आंगन की फुलवारी में, लाड़-प्यार से सींचा तुमने।
बड़े जतन से पाला-पोसा, ठेस लगी जो भींचा तुमने।।
हर एक भावों की तेरी अंगड़ाई हूँ मैं।
कली हूँ तेरे आंगन की,फिर भी पराई हूँ मैं।।
तेरे प्यार का पौधा बड़ा हुआ तो, क्यों रोपा दूजे घर जाकर।
क्या फिर से पनपेंगी जड़ पौधे की, क्यों बन गई गले का कांकर।।
फुलवारी बगिया की तो तरूणाई हूँ मैं।
कली हूँ तेरे आंगन की, फिर भी पराई हूँ मैं।।
पैरों पर अपने चलना सिखाके, आत्मनिर्भर मुझको बनाया।
बेटे सा प्यार दुलार दिया और, फिर दान बेटी का कराया।।
सोच के सारी बातें फिर से, आज लजाई हूँ मैं।
कली हूँ तेरे आंगन की, फिर भी पराई हूँ मैं।।
