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Pankaj Kumar

Others

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Pankaj Kumar

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फिर भी मैं परायी हूँ

फिर भी मैं परायी हूँ

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तेरी चौखट पर आयी हूँ 

अपना घर छोड़ कर 

तुम को जहान मान लिया 

सब जहान छोड़ कर 

नए रीत-रिवाज़ सीख लिए 

पुराने शौंक भी छोड़ आयी हूँ 

क्यों लगता है मुझे कि 

फिर भी मैं परायी हूँ 


दूर सब सखियाँ हो गयी 

भाई-बहन भी दूर है 

कल तक उनकी थी मैं लाड़ली 

आज लगता है तेरा नूर है 

कल जो खुली किताब थी 

अब तेरा राज ही सजाई हूँ 

ना जाने क्यों लगता है 

कि किस लिए मैं आयी हूँ 


तेरी ख़ुशी में मेरी ख़ुशी 

तेरे दर्द से बेहाल हूँ 

क्या कहूं और कब चूप रहूं 

तेरे ही जवाब और सवाल हैं 

तू कब मेरा हाल समझेगा 

कभी बनती खुद ही जग हसाई हूँ 

भूल जाना चाहती हूँ 

कि फिर भी मैं परायी हूँ 

तू ही मेरा सब कुछ है

तेरे लिए ही आयी हूँ 


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