फाल्गुन ऋतु
फाल्गुन ऋतु
भोर हुई तो खुशनुमा है बाहर
सूरज निकले तो लालिमा है डगर
तब पक्षी गाते हैं मिलन के गीत
बड़ी दर्द भरी हैैंं बिछड़न की प्रीत।।
खुल के जब दोपहर मे जाऊं
उदासी भरे वो पहर बिताऊं
कहीं भंवर सरसों मे गुनगुनाते
कभी फूलों की महक हवा भर लाते।
कहीं बैठूं जो पेड़ की छांव में
टिक जाता मन उस बसे गांव में
गेहूं की बाली यौवन में रहती
हरियााली सारे तन मन में बहती।
बसंत पंचमी का पावन त्योहार
भर लाते खुशियां रौनक अपार
शिवरात्रि का भी शुभ अवसर आता
मनमोहक है फल्गुन की बहार।
