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Surendra kumar singh

Others

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Surendra kumar singh

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पड़ाव भी सफर में है

पड़ाव भी सफर में है

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मानसिक आसक्तियों के

कुम्भ के

एक शिविर में

विश्राम कर रहे हैं हम।


कामना कहिए, या चाहत कहिए

सब एक स्वरूप में उपलब्ध है

उनके संयोजन से

जीवन की सार्थकता


भर गयी अपने आप में

इस शिविर में

इतनी तृप्ति के बावजूद

तुम्हारा अभाव


कभी कभी थोड़ा थोड़ा

बेचैन कर जाता है

कभी कभी सोचता हूँ 

तुम्हारे लिये आया


और तुम्ही नहीं मिले

तो अर्थ क्या हुआ

मस्तिष्क की दुनिया से

हृदय की दुनिया तक की

इतनी जटिल यात्रा का।


कभी कभी आश्वस्त हो जाता हूँ

तुम्हारे होने मात्र से कि

हो तो चलोगे मेरे साथ

अपने साथ,

कभी तो

जब तुम्हे ख़याल आएगा मेरा

तुमसे प्रेम का।


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