पैग़ाम देता हूँ...
पैग़ाम देता हूँ...
न सींचो नफरतों को दिल में, ये पैग़ाम देता हूँ,
न होगा कुछ भी हासिल ये, तुम्हे पैग़ाम देता हूँ,
मयस्सर खाक ही होगा, अगर नफ़रत बिखेरोगे,
न मिलता प्यार नफ़रत में, मैं ये पैग़ाम देता हूँ।
समझते हो अगर दुनियां, झुकाने पर ही झुकती है,
नहीं महफ़ूज तुम होगे, यहां सब कुछ बदलता है।
फ़क़त ये सोच लो मिलता यहां है, "जस को तस" जैसा,
आग बुझती नहीं है आग से, पैग़ाम देता हूँ।
जवानी चार दिन की है, इसे बरबाद मत कर दो,
अगर करना ही है तुमको, तो कुछ पल प्यार ही कर लो,
मोहब्बत नाम है रब का, इनायत तुमपे भी होगी,
फ़क़त इंसान बन जाओ, यही पैग़ाम देता हूँ।
कई कुनबे हुए है ख़ाक, जो नफ़रत बढ़ाते थे,
बचा न वंश में कोई, कभी तादाद लाखों थे,
समाई (औक़ात) क्या है तेरी जो, हमेशा रौब देता है,
चींटी भी बड़ी तुझसे, मैं ये पैग़ाम देता हूँ।
