कई कुनबे हुए है ख़ाक, जो नफ़रत बढ़ाते थे, बचा न वंश में कोई, कभी तादाद लाखों थे, कई कुनबे हुए है ख़ाक, जो नफ़रत बढ़ाते थे, बचा न वंश में कोई, कभी तादाद लाखों थे,