पैगाम आएगा
पैगाम आएगा
पैगाम आएगा जिस रोज़
मेरे चले जाने का
होगी कुछ - कुछ
अलसाई सी सुबह चारों ओर
कहीं ईमेल, वट्सअप और ट्वीटर
तो कहीं ट्रिंग - ट्रिंग बजा - बजा
पहुँच रहा होगा
मेरे न रहने का संदेश
तनी चादर के
किसी छोर से
आहिस्ता से
अँगड़ाई भरे हाथों से
रिसीव होंगे फोन कॉल
उड़ जाएगी नींद
मेरे उन सभी अपनों की
भावुक हृदय
शिथिल हाथों से
सरक जाएगा हौले से फोन
सुन खबर मेरे अचानक
यूँ चले जाने बात
कौंध उठेगी सभी यादें
उनके ज़हन में
द्रवित हो जाएँगे चक्षु
रुँध उठेगा गला भी उनका
मेरे बिछोह में,
शायद !
कुछ निकले हो सैर पर
थम जाएँगे कदम उनके भी,
तब ढूँढेगी नज़र उनकी
दो पल बैठने को ठिकाना
पल भर को शायद
हो जाएँ स्तब्ध वे
होंगे कुछ ऐसे भी
जो बढ़ा रहे होंगे
कदम अपने गंतव्य को
स्थिर विचारों ने थाम
लिये होंगे उनके भी पग,
ठेस होगी बहुत गहरी
ये उनको,
बनकर रही थी
जिनके लिए अजीत ,
कैसे सह पाएँगे ग़म
मेरी रुख़सती का..!