Dr. Pooja Hemkumar Alapuria

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ऐ सखी

ऐ सखी

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पूछ ही लिया 

ऐ सखी

आज तुमने 

मेरे व्याकुल चित्त का हाल, 

 

मगर कैसे बयाँ करूँ 

किस्सा इस विकल उर

का सरे आम,

 

मालूम ही है पीड़ा तुम्हें 

मेरे इस कोमल हृदय की 

भरे हैं लाखों छोटे बड़े 

ज़ख्म इस दिल में,

 

मरहम की तो 

बात न छेड़ो

तुम, 

 

ऐ सखी

लगता है अब तो

बेगाना ये सारा जहां 

बेबस सी लग रही हूँ 

अपने आप को, 

 

कैसे बयाँ करूँ 

किस्सा इस विकल उर 

का सरेआम, 

 

ऐ सखी, समझ ही लो

तुम अब अकथित दिल का

किस्सा अपने आप 

नहीं होती 

सहन पीड़ा अब ।


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