यादों के बंद लिफ़ाफ़े से
यादों के बंद लिफ़ाफ़े से
यादों के बंद लिफ़ाफ़े से
आज एक चिट्ठी यूँ हाथ लगी,
सौंधी सी खुशबू में लिपटी,
भीने से एहसास में जकड़ी,
कोरे कागज पर अंकित
इक – इक शब्द ऐसा
जैसे किसी धागे में पिरे मोती,
भावों और यादों का
अनूठा संगम साथ लिए थी,
यादों के बंद लिफ़ाफ़े.........
इसकी इक झलक से
उस दौर से इस दौर का
यादों का सुहाना सफर
क्षणभर में
मुक्कमल हो गया,
यादों के बंद लिफ़ाफ़े.........
वर्षों पीछे छूटे उन लम्हों को
फिर चंद पलों में जी पाया,
कहीं रो उठा तो
कहीं फिर से मुस्काया,
कहीं उसके तो
कहीं मेरे शिकवे थे,
कभी नीम तो
कभी गिलोरी थी पान की,
और कुछ नहीं, तो ये चिट्ठी थी
आज के जख्मों पर मरहम जैसी
यादों के बंद लिफ़ाफ़े.........