पात झरे पेड़ों की छांव
पात झरे पेड़ों की छांव
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पात झरे पेड़ों की छांव
डाल चले लहरों पर पाँव।
बूंद बूंद भूलों के सिलसिले
नदी हुये सागर से जा मिले
लहरों पर सपनों के मेले
श्रापित आकाश के झमेले
लुट चुके विचारों के गाँव
डाल चले लहरों पर पाँव।
कागजी हवाओं की भाषा
जीवन की बदली परिभाषा
माझी की बेढंगी बातें
दिन जैसे अंधेरी रातें
नज़रों से ओझल है ठाँव
डाल चले लहरों पर पाँव।
साहिल का मौजों में खोना
हर पल अनहोनी सा होना
पत्थरों की बारिशों वादे
बुझी बुझी आग के इरादे
धुंध धुँआ धूल के अलाव
डाल चले लहरों पर पाँव।
