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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

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पानी का बुलबुला

पानी का बुलबुला

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टूटकर बेखब्र मैं बिखरा पड़ा हूँ ।

खुद से ही आँखे चुराता आइना हूँ ।।


बस रही इतनी कहानी जिंदगी की ;

दो पलों में सौ दफ़ा मैं मर चुका हूँ ।


देख मुझको चन्द आँखें जागती हैं ;

बस उन्ही के वास्ते मैं जी रहा हूँ ।


फिर सदा देकर बुला ले जिंदगी तो ;

इस लिए दिल की न खिड़की खोलता हूँ ।


कब्रगाहों पर बसी दुनिया पे हैरान ;

एक सूखा ठूठ बरगद ताकता हूँ ।


देख लो 'अस्मित' भला कब फूट जाऊँ ;

मैं भी क्या, पानी का ही तो बुलबुला हूँ ।



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