पानी का बुलबुला
पानी का बुलबुला
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टूटकर बेखब्र मैं बिखरा पड़ा हूँ ।
खुद से ही आँखे चुराता आइना हूँ ।।
बस रही इतनी कहानी जिंदगी की ;
दो पलों में सौ दफ़ा मैं मर चुका हूँ ।
देख मुझको चन्द आँखें जागती हैं ;
बस उन्ही के वास्ते मैं जी रहा हूँ ।
फिर सदा देकर बुला ले जिंदगी तो ;
इस लिए दिल की न खिड़की खोलता हूँ ।
कब्रगाहों पर बसी दुनिया पे हैरान ;
एक सूखा ठूठ बरगद ताकता हूँ ।
देख लो 'अस्मित' भला कब फूट जाऊँ ;
मैं भी क्या, पानी का ही तो बुलबुला हूँ ।
