नव गीत
नव गीत
जग में आया हैं बंदे,
गीत खुशी के गाता चल।
मात-पिता की सेवा से,
चारों धाम का मिले फल।।
यह धरती माता अपनी,
जो पावन देवालय है।
गीत खुशी के गाता चल,
हर एक पत्थर हिमालय है।।
आन-बान-शान निराली,
कण-कण में मोती चमकें।
गीत खुशी के गाता चल,
इधर-उधर तू मत भटके।।
पौधारोपण हरियाली,
जन-जन के मन भाती है।
गीत खुशी के गाता चल,
वसुंधरा अन्न खिलाती है।।
संस्कृतियों का अपनापन,
मनभावन प्यार लुटाता।
गीत खुशी के गाता चल,
सुख-दुख तो आता रहता।।