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दयाल शरण

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4.0  

दयाल शरण

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नसीहत

नसीहत

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और अब किस-किस से लड़ा जाए

जिंदगी में खलल क्यूँ लाया जाए

बहस में ना पड़ें, ज़रा चुप हो जाएं

खामखा बात को क्यूँ बढाया जाए


नासमझ कौन है अब खुदा जाने

कोई उलझन मन में क्यूँ रखा जाए

मशविरा उनको दो जो सुनते हों

बंद द्वार पे कोई नाद क्यूँ पीटा जाए


पद, रुतबा, धन, दौलत बड़ा फौरी हैं जनाब

आसमां ताकते को, जमीं कैसे दिखाया जाए

हम-खयाल, हम-जोली वे कभी होते तो थे

हम वही हैं तो क्या बदला है कैसे बताया जाए


दहलीजें सिर्फ फ़ितूरों पे भी खड़ी होती हैं

हवा है, उन्हें फिर हौसला क्यूँ दिया जाए

हमारा दरवाज़ा तो हमेशा की तरह खुला है

हौसला हो तो उन फ़ितूरों से उबरा जाए


बहस में ना पड़ें, जरा चुप हो जाएं

खामखा बात को क्यूँ बढाया जाए

दहलीजें सिर्फ फ़ितूरों पे भी खड़ी होती हैं

हवा है, उन्हें फिर हौसला क्यूँ दिया जाए!


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