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Sujata Kale

Others

5.0  

Sujata Kale

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नजरें पार कर...

नजरें पार कर...

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उस गली से गुजरते हुए

खटकता है मुझे,

जहाँ आखेटक होते हैं खड़े

ताकते हुए।

जो नारी होने का अहसास

करवाते हैं।

कुछ कठपुतलियाँ भी साथ

हो लेती हैं।

बहेलिया अपना काम करते हैं,

मैं अपना।


क्योंकि, उस गली के किनारे

कुछ पेड़ -पौधे उगाए गए हैं।

जिनमें तुलसी, गुलाब, गेंदें

चमेली और रातरानी

के फूल महकते हैं।

मैं उनको निहारने का

आनंद उठाने के लिए

उस गली से गुजरती हूँ,

नजरें पार कर।


उन फूलों का हिल डुलना

भाता है मन को।

बंधनहीन लहराती सुगंध

छू लेती है मन को।

उनसे मन भर लेने को

मैं उस गली से गुजरती हूँ,

नजरें पार कर।

क्योंकि, फूल

आखेटक, बहेलिया या कठपुतली

नहीं हैं।

इसलिए मैं उस गली से

गुजरती हूँ।

नजरें पार कर।


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