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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Others

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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

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निश्छल छंद...

निश्छल छंद...

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विधा-गीत लेखन

छंद-निश्छल, सृजन शब्द-आभा

कुल 23 मात्राएं,16,7 पर यति,अंत 21


हे जननी जीवन‌ प्रकाशिनी,छू लो माथ ।

हो आभा ऐसी हम पर अब,दे दो साथ ।।

दे दो साथ....दे दो साथ...

जीवन जीना सरल नहीं पर, जानो बात ।

पावन रिश्ता है ममता का,पूजो मात ।।

तुमने हमको पाला तुम हो,सबके नाथ ।

सुखमय कुंड यहॉं करिए,आज प्रमाथ ।।

हो आभा ऐसी हम पर....

दिन-दिन करके दिन ढलता है, जागो रात ।

रजनीचर भी तम में घूमे, करते घात ।।

अंधकार को हर करके अब,जागो पाथ ।

तुमसे ही आशा जागे हैं,गाऊॅं गाथ ।।

हो आभा ऐसी हम पर....।



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