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manisha sinha

Others

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manisha sinha

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नई उमंग

नई उमंग

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अंधेरी लम्बी रातों के बाद

ली खुलकर मौसम ने अँगड़ाई।

फेंक बर्फ़ की उजली चादर

फ़िज़ा भी देखो इतराई।

बंजर सी लगती थी धरती

अब तो हरियाली की घटा सी छाई।

ख़ामोश थे अब तक जीव जो सारे

उनमें नई जोश की लहर सी आई।


ये वसंत ऋतु जीवन का एक

पाठ हमें सिखलाया है।

धर्य रखो ,नई सुबह आएगी

ये विश्वास हमें दिलाता है।

पतझड़ में पेड़ों के पत्ते

वीरान उसे कर जाते हैं।

पर एक दिन ऐसा भी आता है

वो फूलों से भर जाते है।


फिर जैसे फूलों की खूशबू

हवा सुगंधित करती है।

तितली ,भँवरों के गुंजन से

समा सुशोभित होती है।

वैसे ही धीरज रखने से

बिगड़ा काम बन सा जाता है।

मिलती है ख्याति भी हमको

मन ख़ुशियों से हर जाता है।


चाहे हों हालात ये जैसे भी

समय का पहिया घूमता जाता है।

लगती है थोड़ी देर मगर

नई शुरुआत का दिन भी आता है।

नई शुरुआत का दिन भी आता है।



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