नदी-स्तुति
नदी-स्तुति
झिलमिलाती हिल हिलाती
ना रुकती ना है कभी थकती
बस खोए रहना रह प्रवाह
इतना ही नहीं बस काम नदी
जाती हर ओर हालाहल
करती जीवों की काया कल्प
कोई भूख मिटे और प्यास कहीं
और हरे करे खलिहान कहीं
हमनवा जिसका है ना कोई
साथ चले वो साकी के यहीं
द्रढ़ता बाहु कि नहीं हटती
चट्टानों से भी नहीं डरती
करती जीवन खुश हाल नदी
इतना ही नहीं बस काम नदी
शाम कई हैं काम कई
एक पहर का भी आराम नहीं
और गति से पढ़े हैं नाम सभी
कहिं छेत्रफ़ल पर धाम कई
सरिता है तो चल सर सर
है प्रवाहिनी यू प्रवाह सतत
दो तटों के बीच की तटिनी हर
और तेज़ गति क्षिप्रा भी हरत
कई ताप जगहों का है हरती
साधारण ना ये नहर नदी
तकलीफ़े वश में कर रखती
इतना ही नहीं बस काम नदी
