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संजय असवाल "नूतन"

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संजय असवाल "नूतन"

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नारी

नारी

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नारी कोमल,सुडौल काया,

नारी कोमल कल्पना,

नारी कोमल स्पर्श जिसका,

हो जाए हर जड़ चेतनमय,

कभी प्रेम में गुथी है नारी,

मीरा बन पिए बिष का प्याला,

त्याग समर्पण लज्जा प्रतिमूर्ति,

नव जीवन का सृजन भी नारी,

कभी बने शक्ति स्वरूपा,

कभी बने कवियों की कविता,

नारी है सूझ बुझ की जननी,

प्रेरणा का स्रोत भी नारी है,

आशा का संचार करे तन में,

भरती नव चेतन निराश मनु मन में,

लक्ष्मी बिन नारायण भी अधूरे,

अर्द्ध नारीत्व रूप पाकर शिव हुए पूरे,

ममता की छाया भी नारी,

रण में तीखी ढाल कटारी,

कभी चंडी बन कठोर रूप धर लेती,

यशोदा बन प्रेम वात्सल्य लुटा देती,

नारी सृष्टि सृजन, नारी जग पालक,

नारी को शत शत कोटि नमन है।


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