नारी तू क्यों बेचारी है
नारी तू क्यों बेचारी है
नारी तू क्यों बेचारी है।
तू क्यों गमों की मारी है।
क्यूँ सबके लिए जुल्मों सितम से तूने खुद को ढोया है।
आखिर क्यों सबकी खातिर तूने खुद को खोया है।
सबको मोहब्बत देकर तू क्यों मोहब्बत की मारी है।
आखिर नारी तू क्यों बेचारी है।
क्यों डर कर रहती है तू जमाने से।
आखिर तेरे भी कुछ अधिकार है।
तेरे बिना अधूरा यह संसार है।
तेरे बिना मर्दों का कोई वजूद नहीं है
अरे तेरे जितना कोई मजबूत नहीं है
किसी का ख्वाब है तू।
तो किसी का सहारा है तू।
किसी के लिए नफरत एहसास है।
तो किसी के लिए मोहब्बत का किनारा है तू।
किसी के लिए जन्नत है तू।
तू किसी के लिए रहमत का ज़रिया है तू।
बहुत बहादुर और हिम्मत वाली है तू।
फिर क्यों बेचारी है तू।