नाराज़गी
नाराज़गी
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नहीं सही जाती अब मुझसे,
अपने-अपनों की नाराज़गी।
नहीं कटती अपनों के बिन,
हँसी ख़ुशी यह जिंदगी।।
रूठना-मनाना और फिर से
रूठ जाना,
यह तो हम सबकी ही फितरत है।
आओ कुछ पल भुला के यह सब,
कर ले थोड़ी बहुत दीवानगी।।
अब हम तुमको पहले से
ज़्यादा समझेंगें,
कुछ भी कहने, करने से पहले,
हम तुम बनकर सोचेंगें।।
ज़्यादा वक़्त तो गुज़र गया है,
बेमतलब की नाराज़गी में।
जो कुछ लम्हे बचे हुये हैं,
उन्हें यादगार हम बनायेंगें।।