नानी की कहानी
नानी की कहानी
मुझे याद है ये भली प्रकार
मेरी नानी को भाते थे गाने चार
कविता से उनको कोई मतलब नहीं,
पर कहानी सुनाती थी एक ही, अनेकों बार।।
बैठ चूल्हे के पास खाना बनाती,
मुझ संग बैठ, केहकहा लगाती,
गुनगुनाती एक ही अपना फेवरेट गाना
"दूर बन्ना गाए, बन्नी को सुनाए
आजा प्यारी बन्नी रे"
और अपनी जवानी के दिनों में खो जाती।।
फिर सुनाती हमको अपने ज़वानी की कहानी
कैसे कोई दूर से उनको देखता था,
और गाना गा के प्रपोज करता था
"ऐ मेरी पारो कहां चली,
ले जा ये गुड़ की ढली"
हम खुश हो जाते थे, प्यार भरे किस्से सुनने में मजे आते...!!!
