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Krishna Bansal

Others

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Krishna Bansal

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मज़ा ही कुछ और है

मज़ा ही कुछ और है

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सर्दियों के मौसम में 

गुनगुनी धूप में, 

नीले आकाश तले 

प्राकृतिक सुन्दरता का 

आन्नद लेते हुए,

सड़क के किनारे बैठ, 

किसी ढाबे की

गरमा गरम चाय पीने का, 

मज़ा ही कुछ और है।


गर्मियों में

पूर्णिमा की रात में, 

झिलमिलाते तारों की 

सुंदरता को निहारते हुए,

चांद की ठंडक 

महसूस करने का,

कहीं दूर 

अंधेरे और रोशनी का 

रोमांटिक मिलन,

दरख़्तों की 

रहस्यमई बनती कलाकृतियां, 

अपने घर की छत पर बैठ, 

ठंडे पेय का,

मज़ा ही कुछ और है।


बरसात के मौसम में 

चारों और हरियाली, 

वर्षा में नहाए वृक्ष, 

लगातार बरसता पानी,

गरम गरमा पूड़े, 

पकौड़े, घेवर खाने का, 

मज़ा ही कुछ और है।


बर्फ के दृश्य का तो 

कहना ही क्या, 

उसका दुधिया रुप 

चारों तरफ सफेदी ही सफेदी,

बर्फ के गोलों से खेलते बच्चे,

खुशी से दिल का 

बाग बाग हो जाना,

ऐसे दृश्य का तो 

मज़ा ही कुछ और है। 


पतझड़ में 

हवा के हर झोंके से 

पत्तों का गिरना,

हर कदम के साथ 

पत्तों के अम्बार पर 

पैर पड़ना, 

चलने से 'खटखट'

ध्वनि का कानों में पड़ने का,

मज़ा ही कुछ और है।



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