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Swati K

Others

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Swati K

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मुस्कुराहट :

मुस्कुराहट :

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नाजों से पली

पलकों पे रही

घर आंगन में चहकती

सबों की प्यारी

अपने अरमानों संग

यौवन के उस मोड़ पे खड़ी

जहां ना जाने कितने ख्वाब

उड़ने को हो रहे थे बेताब


कभी पंछी बन आसमां को छूना था उसे

कभी अंधेरों से रोशनी ढूंढकर लाना था उसे

कभी इंद्रधनुषी रंगों सा बन चेहरों पे हंसी बिखेरना था उसे

और हमसफ़र संग उम्र भर साथ चलना था उसे

अपने सपनों को जीना था उसे

मंजिल को हर हाल में पाना था उसे


पर क्यों किया उसपर "तेजाब" सा तीखा प्रहार

क्यों ऐसा उमड़ा गुस्से का सैलाब

चेहरे को बेरंग किया

बेबस चीखें ना सुन सका

रूह को भी तड़पा दिया

बदसूरत बनाया तुमने उसको 

और खुद की पहचान बता दिया


बिखरी बिखरी सहमी सी वो

अंदर से थी टूट रही वो

नाज़ुक सी लड़की थी वो

पर मां दुर्गा काली भी थी वो

हिम्मत से थी भरी हुई वो 

शरीर से ही जली थी वो

पर रुह में सांसें अभी बांकी थी


अपने हौसले बुलंद कर

फिर उठ खड़ी हुई वो

अपने आत्मसम्मान को

हासिल करने चल पड़ी वो

अपने खोयी मुस्कुराहट 

वापस लाने निकल पड़ी वो 


इसलिए तो कहती है वो

पल में लम्हे बदलेंगे

ये आंसू भी थम जायेगा

खुशियों की बारिश होगी

फिर वक़्त भी मुस्कुरायेगा!!!

                   


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