मुक्तक
मुक्तक
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जिस तरह आंसूओं के
विष को पी रहा हूँ मैं
क्या तुम्हें अब भी यकीं है
कि जी रहा हूँ मैं
दुनिया के सारे रफ्फूगरों,
थू है तुम पर!
खुद के ज़ख़्मों को
खुद ही सी रहा हूँ मैं