मुक्तक सृजन
मुक्तक सृजन
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तू सुख दे -दौलत दे -तो ना के बराबर शुक्राना
तू दुःख दे- तो खोल देते हैं शिकवा शिकायत का खजाना
क्यों नहीं समझते की ये दुःख नहीं- कर्मफल है
जैसे बोओगे वही तो काटोगे
लगाओगे बीज काँटों के तो -फूल कहाँ से पाओगे
क्यों नहीं समझते की ये कांटे नहीं- कर्मफल हैं .....!
