क्यों नहीं समझते की ये दुःख नहीं- कर्मफल हैं क्यों नहीं समझते की ये दुःख नहीं- कर्मफल हैं
कद्र हुआ मेरा कहीं मंदिर में तो कहीं मस्जिद में भी। कद्र हुआ मेरा कहीं मंदिर में तो कहीं मस्जिद में भी।
अब धुंआ धुंआ सी रहती है जिंदगी , मुझसे अब कुछ न कहते हैं जिंदगी ! अब धुंआ धुंआ सी रहती है जिंदगी , मुझसे अब कुछ न कहते हैं जिंदगी !
मेरे दिए दुख की ना थी उसके चेहरे पर कोई शिकन, सोचने लगी मैं की क्या सोचता होगा उसका मन मेरे दिए दुख की ना थी उसके चेहरे पर कोई शिकन, सोचने लगी मैं की क्या सोचता होग...