मुक्ति
मुक्ति
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कभी वंदन से,
कभी क्रन्दन से,
कभी बंधन से...
...भक्ति करनी चाहिए।
कभी व्यसन से,
कभी टशन से,
कभी मंथन से..
...बचने की युक्ति चाहिए।
कभी फर्ज़ से,
कभी क़र्ज़ से,
कभी मर्ज़ से...
...प्रभु मुक्ति चाहिए।
कभी आत्मरक्षा के लिये ,
कभी पलटवार के लिये ,
कभी आत्म सम्मान के लिये...
.. आवाज़ उठाने की शक्ति चाहिए।।