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प्रभात मिश्र

Others

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प्रभात मिश्र

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मुझसे बेहतर

मुझसे बेहतर

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मुझसे बेहतर भी मुझे जानते हो क्या ?

तुम कुछ कुछ प्रभात को पहचानते हो क्या ?


स्याह पक्ष तो मेरा देखा हैं सभी ने 

मेरी अच्छाईयाँ भी जानते हो क्या ?


या तुम भी बस भीड़ का ही अंग हो 

औरों से इतर और कुछ भी जानते हो क्या ?


हँसी मजाक तक सब जमाने के लिये हैं 

मेरी संजीदगी पहचानते हो क्या ?


मुझसे बेहतर भी मुझे जानते हो क्या ?

तुम कुछ कुछ प्रभात को पहचानते हो क्या ?


बेतक्लुफी ये बेनियाजी देखते हैं सब 

इससे मुख्तलिफ भी कुछ मानते हो क्या ?


इस कम-सुखन सख्त मिजाजी के पीछे के

मेरे बेलौस जज्बातों को पहचानते हो क्या ?


जमाना समझता है मै उज्लत पसंद हूँ 

इसके अजाबों को भी कुछ जानते हो क्या ?


मुझसे बेहतर भी मुझे जानते हो क्या ?

तुम कुछ कुछ प्रभात को पहचानते हो क्या ?


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