मुझसे बेहतर
मुझसे बेहतर
मुझसे बेहतर भी मुझे जानते हो क्या ?
तुम कुछ कुछ प्रभात को पहचानते हो क्या ?
स्याह पक्ष तो मेरा देखा हैं सभी ने
मेरी अच्छाईयाँ भी जानते हो क्या ?
या तुम भी बस भीड़ का ही अंग हो
औरों से इतर और कुछ भी जानते हो क्या ?
हँसी मजाक तक सब जमाने के लिये हैं
मेरी संजीदगी पहचानते हो क्या ?
मुझसे बेहतर भी मुझे जानते हो क्या ?
तुम कुछ कुछ प्रभात को पहचानते हो क्या ?
बेतक्लुफी ये बेनियाजी देखते हैं सब
इससे मुख्तलिफ भी कुछ मानते हो क्या ?
इस कम-सुखन सख्त मिजाजी के पीछे के
मेरे बेलौस जज्बातों को पहचानते हो क्या ?
जमाना समझता है मै उज्लत पसंद हूँ
इसके अजाबों को भी कुछ जानते हो क्या ?
मुझसे बेहतर भी मुझे जानते हो क्या ?
तुम कुछ कुछ प्रभात को पहचानते हो क्या ?
