मतलब परस्त हमनशी
मतलब परस्त हमनशी
यूं ही मतलब परस्त हमनशी से
वफ़ा की गुज़ारिश ना करो।
चाहतों के समंदर में,
इन बेपरवाह लहरों से कश्तियों की
आज़माइश ना करो।
हमको पता है अगन और चुभन में
क्या फ़र्क है,
लगता जरूरी है, लेकिन कहां कोई
तर्क है,
शर्मिंदगी उठाकर जीने से बेहतर है,
यूं ही कातिल नज़रों से, खंज़र फेंका
ना करो।
मौसम का रुख़ तो बदल ही सकते हैं
ये परवाज़ परिंदे,
उड़ो कितना भी लेकिन, परों को काटती
बिजलियों से यूं ना टकराया करो।
इतना घमंड ही क्यों है तुम्हें अपने इस
मिट्टी के पुतले पर,
क्या नहीं पता आपको? इस मिटती
खूबसूरती पर यूं ही इतराया ना करो।