मत सुना ..रात को मत सुना
मत सुना ..रात को मत सुना
अपनी हर कहानी
ओ भी अंधेरों से बेजार है
दु:ख उसके भी दामन में कम नहीं
जो अपना दे उसे और बढा
कितनी वीरान सी है हर रात
संभाले तन्हाई कितनी
है इंतजार कितनी बाहों को
मेहबूब का अपने
निंद भी रूठी हुँई
आँखो से दूर कहीं
मत सुना मत सुना
कुछ हासिल नहीं…
अंधेरो में सिसकियां लेने से
कुछ हासिल नहीं ..