मृत्यु की उपासना
मृत्यु की उपासना
कराल भाल साधना,
कि मृत्यु की उपासना,
कि अंत सत्य है नहीं कि ,
मृत्यु से क्या भागना।
कि आत्म का है वस्त्र देह,
वस्त्र से भी मोह क्या,
शाश्वत ये है नहीं कि ,
इससे प्रेम कैसा पालना।
की आत्म तो अमर सदा,
ना मर सके ना मिट सके,
अमरत्व रूप के लिए,
क्या अमरता की कामना।
जीव के लिए जगत,
ये मार्ग है कि लक्ष्य ना,
कि चक्षु भ्रम में पड़ इसे ही,
ध्येय अपना मानना।
मृत्यु चिह्न जीत का,
ना हार का प्रतीक है,
जीत का है चिह्न जो कि,
उससे हार कैसे मानना।
कि मृत्यु की ये साधना,
कि अंत की उपासना,
कि मृत्यु अंत है नहीं,
फ़िर मृत्यु से क्या भागना।।
