मनमर्ज़ियाँ मेरी
मनमर्ज़ियाँ मेरी

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जो सुकून मिल रहा है मुझे
जज्बातों में बहने से..
तो उसमें बुरा क्या है ?
लोग तो हिमालय तक
चले जाते हैं...
उसे पाने के लिये..
जो कर लेती हूँ....
मैं खुद की परवाह
तो इसमें
सब ख़फ़ा क्यों है
ज़िंदगी मेरी..
मनमर्ज़ियाँ मेरी...