मन
मन
1 min
165
डूबते गए यूं कि फिर उभर ना पाए
जुड़ना चाहा तो भी जुड़ ना पाए
जिंदगी ऐसी तो नहीं,
जिंदगी जैसी है वैसी ही सही,
कहकर झुक जाते हैं हम सभी,
हलचल से सहम जाते हैं कभी ।
भटकता है मन कोई जरिया मिलता नहीं
रेत सा बिखर कर बह जाता है हर कहीं
सूखे दरिया सा बेरंग,
कच्चे धागे से लिपटी पतंग।
दिख जाती है कभी इधर कभी उधर ,
पर मिलती नहीं जिंदगी से जीने की कोई खबर,
थक हारकर फिर कह देता है मन
कट तो गई जिंदगी अब क्यों गम ?
