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डॉअमृता शुक्ला

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डॉअमृता शुक्ला

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मन

मन

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पता नहीं, 

मन क्या चाहता है? 

शोर से बेचैन होता, 

अकेलेपन से घबराता है। 

तुम्हारा हूं सदा ये जताता है।

फिर कहीं गुम हो जाता है। 

ढूंढती हूं जो कहीं उसे, 

यादों के अंबार में नज़र आता है। 

नियति होती है मिलना- बिछड़ना, 

कुछ देर में मुझसे मिल पाता है। 



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