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Sunita Katyal

Others

0.9  

Sunita Katyal

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मन की उलझन

मन की उलझन

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परिस्थितियाँ ज़रा सी उलझती है

मन दोगुना उलझ जाता है

मन को तो हर वक्त सब कुछ

अपने अनुकूल चाहिए

ज़रा सा कुछ बदला तो बस

ये पूरा हिल जाता है


मन खिन्न या यूं कहे मूड ऑफ

बस अब इसे मनाइये

अरे हो जाएगा,कुछ खास नहीं है

सब संभव हो जाएगा

पर ये हठी,बार बार दोहराता है


अभी तो बिगड़ गया है

हौसला पस्त और

साथ में शरीर अस्त व्यस्त

कोशिश करिए, लगे रहिए पूरा दिन

पॉजिटिव वाइब्रेशन देते रहिए

तब कहीं संभल पाता है




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