मन का महाभारत
मन का महाभारत
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अपने-अपने युद्ध हैं,
अपने-अपने हैं व्यूह!
हैं हम स्वयं ही कृष्ण,
हैं हम ही अभिमन्यु!
सही-गलत का युद्ध,
चला आ रहा सतत!
अपना-अपना पक्ष है,
अपना-अपना, मत!
कोई युयुत्सू बन के,
है पाला बदल रहा!
ये महाभारत का रण,
हर मन में चल रहा!
जीत-हार के मायने,
सब हैं इसमें सापेक्ष!
हरेक लड़े युद्ध यहाँ,
रह न पाए, निरपेक्ष!
