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KARAN KOVIND

Others

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KARAN KOVIND

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ममयखाना अंश

ममयखाना अंश

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कलश कलश जब टकरायेगा  

प्रकट होगा मयखाना

बीच सदन में झकझोर

गीत गायेगा मीठा प्यारा

धिनक धिनक धिन नाच रहा

बीच वारुणो के शाला

और मनोहर जग भुलाकर

खूब पिलाओ घट का हाला

अंतर में धर मीठा प्यारा

नाच दिखाओ साकीबाला


कलश कलश जब टकरायेगा

प्रकट होगा मयखाना

आधे में भर दो सुर का गाना

आधे में मदिरा को छाना

मुझ में तो सतसक्त गिरा दो

पूरा पूरा जल का काढ़ा

मैं थक चुका पीते पीते

कुछ नया पिलाओ मधुशाला

अब तो फिर लौट रहा

भर घट मदिरा को मयखाना



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