Shayra Zeenat ahsaan

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ममत्व का झंडा

ममत्व का झंडा

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ईंट, गारा सिर पर

ढोती, पर मुस्कुराती है

पीठ पर उसने अपनी

बांध लिया है चाँद

चाँद रह रह के

गठरी में मुस्कुराता है

फेंकता है हाथ- पैर

जो कभी -कभी गठरी

से बाहर लटक जाते है

वो सम्हालती है फिर उसे

चुमकारती है बार बार

लगाती है निकाल कर

आंखों से काजल का   

टीका पैरों के तलुओं पर


भीग आती है ऑंखें

उमड़ पड़ता है प्यार

भर जाती है छाती

दूध की फुहार से

वह रह रह कर हुमक जाता है

और मारता है एड़ियां

छातियों तक पहुँचने को

ठेकेदार कहता है खाना खाओ

विश्राम करो

तब वो लेती है उसे गोद में

पिलाती है अमृत

फिर लिटा देती है

तपती हुई दुपहरी में

किसी किनारे और फहरा देती है

ममत्व का झंडा निकालकर झोले से

फिर हवा गुनगुनाती

और हिल उठता है झंडा

हिल रहे ममत्त्व के झंडे को देख

फिर वह किलकारियां लेता 

झटकता, पटकता

अपने हाथ पांव

सो जाता है निश्चिंत


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