।। मिठाइयों से सीख ।।
।। मिठाइयों से सीख ।।
इस दिवाली चलो हम सब, कुछ मिठाई सा बन जायें,
इनकी मिठास में डूब डूब, थोड़े इनके गुण भी अपनायें ।।
मोतीचूर के लड्डू से बनें, हम जिससे मिलता है ये ज्ञान,
छोटे छोटे कर्मों से जुड़ कर, तुम जीतो कोई लक्ष्य महान,
जैसे वो छोटी छोटी बूंदी से, अपना गुण आकार बनाता है,
वैसे छोटे छोटे लक्ष्यों से, इंसान अपने साहिल को पाता है ।।
रसगुल्ला सिखलाता है, हमको, जीवन में कब कैसे लड़ना है,
रस निचोड़ लें चाहे श्रम सारा, बस हमें जीत पर अड़ना है,
चाहे रहे रस में हौं डूबे या,फिर हम को कर दो रस विहीन,
हम ना टूटे, ना ही बिखरे, खिज़ा का हो या मौसम रंगीन ।।
जलेबी कितनी भी टेड़ी मेड़ी, क्या स्वाद में कुछ अंतर आता,
तो फिर क्यों काले, गोरे, नाटे, लंबे इन मैं हम ढूंढ़ें अपना नाता,
रूप कोई हो आड़ा,तिरछा, फिर चाहे हो नर्म या कड़क जवानी,
बस रस में डूबी बातें हौं, कितनी भी हो उलझी ये जिंदगानी।।
सोहन पपड़ी से भी सीखो तुम तिरस्कार को हंस कर सहना,
मुस्कान न जाती चेहरे से, फिर चाहे थाल सजी बर्फी बहना,
हर बार तिरस्कृत होकर भी, ना अब तक इसने हिम्मत हारी है,
कर परिष्कृत खुद को बनी पतीसा, अब ये भी सबकी दुलारी है।।
काजू कतली ने भी भैया, ये हमको हैं एक ज्ञान दिया अनोखा,
मेल करो जो गुणियों से तो, जीवन रंग तुम्हारा भी हो चोखा,
अपनी कीमत अपनी गुणवत्ता के, तुम खुद ही संवाहक हो,
खुद को कर लो इतना ऊंचा, बस सम्मान लिए हर ग्राहक हो ।।
तो ये दीवाली ना हो सिर्फ, मीठा खाने और खिलाने को,
याद रहे ये दीपोत्सव, अब कुछ नई सीख सिखलाने को,
याद रहे ये दीपोत्सव, अब कुछ नई सीख सिखलाने को।
