महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि
हे ! शिव शंभू, भोले त्रिपुरारि
हलाहल पीकर बने दुःख हारी
जनकल्याण को कष्ट सहे भारी
तुझ पर हे रुद्र ! हम बलिहारी
कैलाश में है प्रभु तेरा निवास
पधारें भक्त जन दर पर तेरे
लेकर अपने मन की आस
मत करना प्रभु उन्हें निराश
शीश जटा जूट, विराजे गंगा
तन भस्म रमा रुप धरे बेढंगा
शीश चन्द्र धारण कर चन्द्रधर
तुम ही शशिधर भी कहलाये
त्रिशूल डमरू नित निनाद करते
कैलाशपति शिव साहस भरते
लिपटे कंठ भुजंग, विषधर माला
मनभावन रुप नटराज निराला
चले उमा के सदन सोमेश्वर
लेकर बाराती गण छैल छबीले
महाशिवरात्रि का पर्व है आया
चहुं दिसि नव उल्लास है छाया
संग मां पार्वती त्रिशूल विराजे
वाहन रुप धरि नंदी बैल साजे
तन बभूत और भस्म रमाया
शिव नेत्रों में त्रिलोक समाया ।।