महाशिवरात्रि!
महाशिवरात्रि!
पीढ़ी दर पीढ़ी में हो रहा है बदलाव,
शिव की महिमा में अलग ही है कुछ खिंचाव
धरा और गगन पर कैलाश पर्वत का है चढ़ाव,
सभी जीव जंतु का हमेशा से रहा आपके समक्ष झुकाव।
अपने कंठ पे धारण किया सृस्टि के विष का प्याला,
गंगा की धार से सभी में प्रेरणा का श्रोत रच डाला,
शीर्ष पे चंद्र धारण कर फैलाया रात्री में उजियाला,
ब्रह्माण्ड को खुद में समाके फिर भी है कितना भोला मन वाला।
मन मंदिर में करते है पूजा तेरी महादेव,
तेरे और चलने का मार्ग दिखाना हमें सदैव
जीवन के अंतिम बिंदु पे करना हमारा रखरखाव
अपने भक्ति की ज्वाला से अनुरक्षित करना हमें सदभाव।
शिव पार्वती की जोड़ी लाती है अलौकिक विचारधारा,
इनके स्मरण से वसीभूत मन चल पड़े होके बंजारा
दूध, पुष्प और बेल के पत्तों का करदू तुझपे चढ़ावा,
तुझसे सब पाया मैंने, किसपे करु अपना फिर दावा।
दोस्तों,लिखूँ अगर भगवन शिव के बारे में
तो बीत जाये न जाने कितने करोडो वर्ष,
हर जनम तेरे नाम से ही निकलेगा
मानव जीवन का उत्कर्ष।