महादेव
महादेव
महादेव ! उनकी महिमा कहूँ में कैसे,
इतनी मेरी समझ नहीं,
साधन भी कुछ सरस नहीं,
काल नहीं महाकाल हैं,
फिर भी भोलेनाथ हैं।
दीन-हीन, भक्तों की रक्षा,
उनके सिवा न कोई दूजा,
गले में सर्प, जटा में गंगा,
सिर पर चंद्र,
माँ अन्नपूर्णा से लेते भिक्षा।
भोले बड़े दयालु हैं,
वर देने से नहीं कतराते हैं,
जिसपर भी वो प्रसन्न हो जाते,
सबको इच्छित वर हैं देते।
बात जब आती भक्तों की तब,
तनिक भी नहीं देर वो करते,
समुद्र मंथन में हलाहल विष जो निकला,
तीनों लोक पर छाया था खतरा,
तब सबकी रक्षा की खातिर,
तनिक भी न घबराए भोले,
गले में अपने विष दिया उतारा,
तबसे नाम 'नीलकंठ' कहलाया।
वर्षों तप किया भस्मासुर ने,
इच्छित फल भोले से माँगा,
भोले ने खुश हो वर दे डाला,
जिसपर भी रखोगे हाथ,
वहीं भस्म हो जाएगा तब,
भस्मासुर ने उन्हें खूब डराया।
भोले मेरे औढ़रदानी,
स्कंद, गणपति सुपुत्र हैं जिनके,
नंदी भक्त हैं उनकी सवारी,
माँ पार्वती अर्धांगिनी उनकी प्राण से प्यारी,
देवों के भी देव हैं, कहलाते महादेव हैं।
